आज हम कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं। यह सिल्वर जुबली है, यानी 25वां वर्ष है उस ऐतिहासिक विजय का, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया था। पाकिस्तान ने सोचा था कि भारत के साथ समझौता करके उन्हें धोखा दिया जा सकता है, लेकिन भारतीय सेना ने 1999 में अपने अद्भुत रण कौशल से उनके इरादों को विफल कर दिया।
1999 की कारगिल घटना की जड़ें वास्तव में 1998 में थीं, जब भारत और पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किए थे। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर फरवरी 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर समझौता हुआ। लेकिन पाकिस्तान की सेना को यह समझौता अस्वीकार्य था क्योंकि 1971 में भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। पाकिस्तान की सेना ने भारत के खिलाफ गुप्त रूप से तैयारी शुरू कर दी थी।
कारगिल युद्ध की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तान की सेना ने सर्दियों में खाली पड़े भारतीय बंकरों पर कब्जा जमा लिया। एक चरवाहे की सूचना पर भारतीय सेना को इसका पता चला और फिर मई 1999 में भारतीय सैनिकों ने ऊंची चोटियों पर बैठी पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लिया।
भारतीय सेना ने अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी, जब दुश्मन ऊंचाई पर बैठे थे और भारतीय सैनिकों पर हमला कर रहे थे। लेकिन हमारे वीर जवानों ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया और अंततः 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने अपनी चोटियों को पुनः प्राप्त कर लिया। इसी दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आज इस विजय के 25 साल पूरे हो चुके हैं, और इस अवसर पर देशभर में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री कारगिल वार मेमोरियल पहुंचे हैं और वहां के कार्यक्रमों में शरीक हो रहे हैं। इसके अलावा, आज शिंकु ला टनल प्रोजेक्ट का शुभारंभ भी किया जा रहा है, जिससे लेह की सालभर कनेक्टिविटी सुनिश्चित हो सकेगी। यह टनल दुनिया की सबसे ऊंची टनल होगी और इसे बनने में लगभग 3 साल का समय लगेगा।
इस ऐतिहासिक दिवस पर, हम सभी को उन वीर सैनिकों को याद करना चाहिए जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारे देश की रक्षा की। उनके साहस और बलिदान को नमन करते हुए, हम सभी को उनकी कहानी से प्रेरणा लेनी चाहिए और देशभक्ति की भावना को प्रबल बनाए रखना चाहिए।