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एक टाइपिंग की गलती बन गई केंद्र सरकार की हार की वजह

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आज के सेशन में हम चर्चा करने वाले हैं एक ऐसे अजीबोगरीब केस की, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को यह कहना पड़ा कि यह टाइपिंग मिस्टेक थी। जिस टाइपिंग मिस्टेक के चलते इतने करोड़ों का नुकसान हो गया। एक टाइपिंग मिस्टेक थी जिसके चलते केंद्र सरकार को झुकना पड़ा। एक टाइपिंग मिस्टेक थी कि रॉयल्टी टैक्स है या सस ऑन रॉयल्टी टैक्स है। यानी कि एक लाइन है कि रॉयल्टी इज ए टैक्स और सस ऑन रॉयल्टी इज ए टैक्स। तो बोले टाइपिस्ट ने जो सैस ऑन लिखा हुआ है, यानी कि रॉयल्टी पर जो उपकर है, वो एक टैक्स है यह लिखना शायद भूल गई होगी। यह जानकारी फिलहाल के लिए निकल कर आ रही है।

आज के सेशन की हेडलाइन है कि रॉयल्टी टैक्स नहीं होती है। अब यह बात समझने के लिए आपको विस्तार से रॉयल्टी क्या होती है, टैक्सेशन क्या होता है, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच क्या होती है। ये कितना ऐतिहासिक फैसला है कि नौ जजेस की बेंच को इस फैसले को लेना पड़ा। उसमें भी ठ एक के बहुमत से यह फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही पुराना फैसला, जो कि सात जजेस की बेंच का लिया हुआ था, वह पलट दिया। तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले, जो सात जजेस की बेंच के थे और एक पांच जजेस की बेंच का था, दोनों फैसले यहां पर पलटे गए। और पलटने के बाद में एक नया फैसला आया। इसका मतलब जब भी सुप्रीम कोर्ट के अंदर संवैधानिक बेंच बैठती है तो वह पुराने फैसले तभी पलट सकती है जब उससे बड़ी बेंच बैठे और यह बेंच बैठने में काफी टाइम लग गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मामला 2011 से पड़ा हुआ है। लेकिन बहुत बाद में जाकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चलो ले आओ उस मामले को, उसकी भी संवैधानिक ट्राई कर लेते हैं। और तब जाकर उसकी संवैधानिक ट्राई हुई।

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आज सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश में बहुत सारा मतलब एक तरह से समझिए कि बहुत सारे परिवर्तन लेकर के आएगा। किन मामलों में लेकर आएगा तो आंसर है माइंस एंड मिनरल्स के मामले में। कैसे लेकर आएगा तो चलिए मैं आपको डिटेल में बताता हूं।

देखिए, यहां पर हेडलाइन है रॉयल्टी इज नॉट ए टैक्स। अब यह लाइन जब मैं आपको बोलता हूं कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है तो पहला सवाल यह बनता है सर रॉयल्टी होती क्या है और किस बारे में हम चर्चा कर रहे हैं, यह बताइए। बताते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, केंद्र सरकार को बड़ा झटका है और यहां रॉयल्टी की बात हो रही है खनिजों पर लगने वाली। अब यह होता क्या है, इसको समझने के लिए मैं आपको बताऊं। उससे पहले थोड़ा सा उन लोगों के बारे में जान लो जिन्होंने यह फैसला दिया है। नौ जजेस की बेंच जिसमें खुद CJI शामिल थे, उनमें से आठ एक के बहुमत से फैसला और उनमें से केवल एक जस्टिस बीवी नागर, उनका यह कहना कि नहीं, यह ऐसा नहीं होना चाहिए। इसके अलावा बाकी सबने यह माना कि साहब 1989 में जो खनिजों पर फैसला आया था वह गलत था। इसका मतलब 1989 का जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला था जिसमें रॉयल्टी को कर के रूप में वर्गीकृत किया गया था, वो गलत था।

तो अब आपके दिमाग में सवाल बनने लगेगा, ऐसा क्या फैसला था? क्या हो गया था? और बीवी राग रत्ना का असल में पॉइंट क्या है, वो क्या चाहती हैं कहना? सारी बातें आपको समझाते हैं।

तो देखिए, क्या है कहानी? थोड़ा सा इसके अंदर डिटेल में चलते हैं। हमारे देश में बहुत सारे माइंस और मिनरल्स पाए जाते हैं। माइंस और मिनरल्स न खनिज और खदान के अंदर पाए जाते हैं। जैसे कहीं कोयला पाया जा रहा है, कहीं एलुमिनियम पाया जा रहा है, कहीं लोहा पाया जा रहा है, कहीं पर गोल्ड, कहीं पर सिल्वर, कहीं यूरेनियम, इस तरह की माइंस यानी कि जमीन में से खदान खोद करके सामान निकाला जा रहा है। अब जब खनिज खोद के निकाले जा रहे हैं जिन्हें आप मिनरल्स कह रहे हैं, ये पूरे देश में निकल रहे हैं। पूरे देश के अंदर 28 राज्य हैं, आठ यूनियन टेरिटरी हैं, कहीं न कहीं से निकल रहे होंगे। राज्य सरकारें क्या करती हैं कि उनके यहां से जो भी माइंस और मिनरल्स निकाले जाते हैं, उन पर टैक्स वसूलते हैं। अब यही सारी कहानी है। टैक्स वसूलते हैं बस यही शब्द 1989 के पॉइंट को आज सुप्रीम कोर्ट ने गलत कहा है। रॉयल्टी टैक्स नहीं है। राज्य सरकारें रॉयल्टी वसूलती हैं।

अब यह कहानी क्या है, अब उसको समझते हैं। तो कुछ इस तरह से समझिए कि भारत के विभिन्न राज्यों में जितने भी माइंस और मिनरल्स की खदानें हैं, उनसे जब खनिज को निकाला जाता है तो खनिज को निकालने के बाद राज्य सरकार कहती है, मान लीजिए मैं राजस्थान की बात करूं, राजस्थान जिसे खनिजों का अजायब घर कहते हैं। मिनरल्स कहते हैं कि हमारे यहां इतने प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। तो हमारे यहां जब खनिज पाए जाते हैं, मिनरल्स पाए जाते हैं, तो हम खनिजों का एक्सट्रैक्शन करते हैं और उसके बाद राज्य सरकारें उस पर टैक्स वसूलती हैं।

अब यह टैक्सेशन का पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। क्योंकि एक सवाल उठा कि रॉयल्टी एक टैक्स है या नहीं। 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रॉयल्टी एक टैक्स है। रॉयल्टी इज ए टैक्स। लेकिन 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजेस की बेंच ने कहा कि रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है। रॉयल्टी इज नॉट ए टैक्स।

अब यह किसकी बात सही माने? सुप्रीम कोर्ट में नियम होता है कि जितनी बड़ी बेंच का फैसला होगा वो मान्य होगा। अगर सात जजेस की बेंच का फैसला है तो वो मानना पड़ेगा। पांच जजेस की बेंच का फैसला मान्य नहीं होगा। लेकिन यह ताकत मिल गई राज्य सरकारों को कि उन्हें यह सिद्ध करने में मौका मिलेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसले में माना है कि रॉयल्टी टैक्स नहीं होती। क्योंकि यह प्राइवेट लोगों को भी दी जाती है।

तो यह पूरा मामला बहुत ही दिलचस्प है और इसमें हमें यह समझने की कोशिश करनी होगी कि रॉयल्टी और टैक्सेशन का क्या संबंध है और सुप्रीम कोर्ट ने कैसे इस मामले को सुलझाया है।

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