प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में रूस यात्रा ने वैश्विक राजनीति में कई सवाल उठाए हैं। मोदी जी ने इस यात्रा में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की और रूस का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त किया। हालांकि, इस सम्मान के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की नाराज हुए।
अमेरिका ने भारत को धमकी दी थी कि अगर भारत ने रूसी मिलिट्री के साथ कोई भी डील की, तो अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से जुड़े भारतीय बैंकिंग सिस्टम को नुकसान पहुंचाया जाएगा। इसके बाद खबर आई कि भारत के प्रधानमंत्री यूक्रेन की यात्रा पर जा सकते हैं, संभवतः पोलैंड होते हुए।

यूक्रेन यात्रा के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण भारतीय नौसेना की मजबूती है। भारतीय नौसेना के कई फ्रीगेट्स (लड़ाकू जहाज) यूक्रेनियन गैस टरबाइन से चलते हैं, जो सोवियत रूस के जमाने से ही चले आ रहे हैं। यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष के बावजूद, भारत ने यूक्रेन से गैस टरबाइन प्राप्त करने में सफल रहा है।
इसके अलावा, भारत ने 2016 में रूस से चार गाइडेड मिसाइल फ्रीगेट्स खरीदने का निर्णय लिया था, जिसमें से दो रूस में और दो भारत में बनाए जाने थे। इसके लिए यूक्रेन से इंजन की आवश्यकता थी, जो रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया। भारत ने बड़ी समझदारी से यूक्रेन से इंजन प्राप्त कर रूस को दिए और अपनी परियोजना को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया।
भारत की कूटनीति यहीं नहीं रुकी। भारत की एक कंपनी, भारत फोर्ज ने यूक्रेन की इंजन बनाने वाली कंपनी ज़ोरिया मैश प्रोजेक्ट के मेजॉरिटी स्टेक्स खरीद लिए, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान हो सके।
प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत को अपने नौसेना के लिए आवश्यक गैस टरबाइन की मरम्मत और रखरखाव के लिए यूक्रेन की आवश्यकता है। इसलिए, यह यात्रा न केवल अमेरिका और यूक्रेन को संतुष्ट करने का प्रयास है, बल्कि भारतीय नौसेना की ताकत को बनाए रखने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह सब दिखाता है कि भारत की कूटनीति कितनी सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से भरी है। प्रधानमंत्री मोदी की रूस और यूक्रेन की यात्राएं केवल वैश्विक संतुलन बनाने का प्रयास नहीं हैं, बल्कि भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।